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आद्यैतिहासिक कालीन भारत

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          प्रोगैतिहासिक काल के बाद के समय को आद्य ऐतिहासिक (3500 ई.पू. - 1500 ई.पू. ) काल के रूप में जाना जाता है इस काल में मनुष्य  ने लिखने की कला अर्थात लिपि का आविष्कार कर लिया था किंतु इस काल के लेखों का अध्ययन वर्तमान समय में नहीं किया जा सका है अतः इतिहास के इस कालखंड को  जिनके बारे में हमें लिखित एवं पुरातात्विक दोनों ही साक्ष्य प्राप्त होते हैं किंतु उनके लिखित साक्ष्य का अध्ययन वर्तमान समय में नहीं किया जा सका है आद्य ऐतिहासिक काल के अंतर्गत आते हैं।  इस काल की महत्वपूर्ण सभ्यता में सिंधु घाटी सभ्यता आती है जो वर्तमान पंजाब , हरियाणा , राजस्थान गुजरात ,महाराष्ट्र  एवं पाकिस्तान , अफ़गानिस्तान के क्षेत्र में फैली हुई थी।  सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।             आद्य ऐतिहासिक काल को कांस्य युग भी कहा जाता है। सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी आदि मानव धीरे-धीरे विकास करते हुए कबीलाई जीवन से नगरीय जीवन तक पहुंच चुका था। सिंधु घाटी सभ्यता एक सुरक्षित सभ्यता थी इस सभ...

प्रोगैतिहासिक कालीन भारत

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       जैसा  हमें ज्ञात है कि भारतीय इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है।  प्रागैतिहासिक काल (25  लाख - 3500 ई.पू.), आद्य ऐतिहासिक काल (3500 ई.पू. - 1500 ई.पू.)  एवं ऐतिहासिक काल (1500 ई.पू. - वर्तमान) | प्रोगैतिहासिक काल मानव जीवन के विकास का आरंभिक चरण है जिसके बारे में हम अभी पढ़ेंगे।   पाषाण काल की विशेषताएं        प्रागैतिहासिक काल का नाम पाषाण काल भी है क्योंकि इस युग में मानव पूरी तरह से पत्थरों पर निर्भर रहता था।  पत्थरों की गुफाओं में रहता था।   पत्थरों के हथियारों का उपयोग करता था साथ ही हड्डियों के औजारों , हथियार  का उपयोग करता था।   कंद-मूल, फल एवं कच्चा मांस खा कर अपना जीवन यापन करता था।  इस प्रकार मनुष्य एक जंगल में जंगली मानव के रूप में निवास करता था।   इस काल के संदर्भ में हमें कोई लिखित जानकारी प्राप्त नहीं होती केवल पुरातात्विक स्रोतों के अध्ययन से ही इस काल  के मनुष्य का जीवन परिचय हमें प्राप्त ...

भारतीय इतिहास की रुपरेखा

इतिहास क्या है ?         मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है जो हमेशा विकास की ओर जाने के लिए तैयार रहता है विकास की राह में जाने के लिए या तो वह नए-नए शोध करता है या अपने पिछले कुछ किए हुए कार्यों से सीखता है , अनुभव करता है। यही अपने पिछले जीवन से सीखने की कला ने मनुष्य को इतिहास से जोड़ दिया मानव अपने पूर्वजों के जन-जीवन से जुड़ी हुई बातों का अध्ययन कर उसको समझने एवं उनसे जुड़े हुए अवशेषों , लेखों आदि का अध्ययन करने में धीरे-धीरे रुचि लेने लगा और इस प्रकार इतिहास का विकास होने लगा।  सामान्य शब्दों में  " अपने बीते हुए कल से व्यक्ति वर्तमान में जो सीखता है, उसका अध्ययन करता है इतिहास कहलाता है। " इतिहास  की विभिन्न परिभाषाएं       प्रोफेसर रेनियर के अनुसार " इतिहास समाजों की यादें हैं ।"      प्रो.जी.आर. एल्टन के अनुसार “ इतिहास का संबंध उन सभी मानवीय बातों, विचारों, कर्मों और कष्टों से है जो           अतीत में हुए थे और वर्तमान जमा राशि को छोड़ चुके हैं; और यह परिवर्तन और विशेष रूप से उ...

वैदिक कालीन छत्तीसगढ़

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       श्री प्यारे लाल गुप्त जी के शब्दों में प्राचीन कथा के अनुसार रतनपुर छत्तीसगढ़ के चारो युग की प्राचीन राजधानी थी सतयुग में इसका नाम मणिपुर था त्रेता में भी मणिकपुर द्वापर में हीरापुर और कलयुग में इसका नाम रतनपुर है।  इस प्रकार हम कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ में वैदिक युग की छाप अमिट रूप से देखने को मिलती है। ऋगवैदिक काल या पूर्व वैदिक काल (1500 -1000 ई. पू.) के विषय में छत्तीसगढ़ क्षेत्र की  कोई जानकारी नहीं मिलती। उत्तर वैदिक काल  (1000 -600 ई.पू.) से सम्बंधित जानकारी यहां देखने को मिलतती हैं।        रामायण , महाभारत जैसे पुराणों में छत्तीसगढ़ की जानकारी देखने को मिलती है रामायण काल में विंध्याचल पर्वत का दक्षिण भाग को दक्षिण कोशल कहा जाता था जिसके राजा भानुमंत थे एवं उनकी पुत्री माता कौशल्या थी। जो आगे चलकर श्री राम की माता हुई थी।        स्थानीय अनुसूचियों के अनुसार राम के 14 वर्षीय वनवास का अधिकांश समय छत्तीसगढ़ के इन्हीं सघन जंगली क्षेत्रों में व्यतीत हुआ था। रामायण काल में इस क्षेत्र को दक्षिण...

छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक एवं आद्यैतिहासिक इतिहास

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छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक इतिहास             जिस समय से मानव का उदय जिस स्थान से आरंभ हुआ वहीं से इतिहास की नीव पड़ गयी।छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों पर मानव सभ्यता की अनेक झलक दिखाई पड़ती है , जिसमें पाषाण काल, वैदिक काल एवं आधुनिक कालीन इतिहास के साक्ष्यों से छत्तीसगढ़ की धरा भी सुशोभित है।    प्रागैतिहासिक काल -  यह वह समय था जिस समय मनुष्य कंदराओं अर्थात गुफा में निवास करता था , वस्त्रों के अभाव में पेड़ों की छाल , जानवरों के चमड़े का उपयोग करता था।  पैरों से चलने की बजाय वह पेड़ पर ही रहता था।  कंदमूल खाकर , कच्चा मांस खाकर अपना जीवन यापन करता था।  पत्थरों के औजार , हड्डियों के औजार का उपयोग अपनी सुरक्षा के लिए तथा जानवरों के शिकार के लिए करता था।  पाषाण काल को सुविधा की दृष्टि से तीन भागों में विभाजित किया जाता है  पुरापाषाण काल ,मध्य पाषाण काल ,नवपाषाण काल पाषाण युग को 2400000 वर्ष पूर्व से 12000 साल पूर्व तक के समय को माना गया है।  छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों यथा  रायगढ़ की पहाड़ियों पर, अ...

नवगठित छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक इकाइयां एवं उसका विकास

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      छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवंबर 2000 को देश के 26 वें राज्य के रूप में हुआ है।  इस के संदर्भ में हमने पहले भी अध्ययन कर लिया है।अभी पढ़े   छत्तीसगढ़ राज्य का गठन    छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति एवं उसका विस्तार छत्तीसगढ़ राज्य   17 0 46'    उत्तरी अक्षांश से  24 0  05'  उत्तरी अक्षांश तक तथा  80 0  15'  पूर्वी देशांतर से  84 0 24'    पूर्वी देशांतर के मध्य है।  छत्तीसगढ़ का कुल क्षेत्रफल  2011 की जनगणना अनुसार 135192 किलो मीटर वर्ग वही 2001 की जनगणना के अनुसार 135191 किलोमीटर वर्ग है।  छत्तीसगढ़ का भूभाग देश के कुल क्षेत्रफल का 4.11% है।  क्षेत्रफल की दृष्टि से छत्तीसगढ़ का देश में 9 वां  स्थान है ( स्त्रोत आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15 ) |   छत्तीसगढ़ देश की दक्कन पठार से लगे प्रायद्वीपीय पठार के अंतर्गत आता है। इसकी आकृति सी हॉर्स के समान है इसकी कोई भी सीमा समुद्र तट को नहीं लगती अतः छत्तीसगढ़ एक भू आवेष्ठित राज्य है।  किसी दूसरे देश के स...

छत्तीसगढ़ राज्य का गठन

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 छत्तीसगढ़ राज्य का गठन       छत्तीसगढ़ राज्य का गठन एक क्रमिक विकास का परिणाम है।  देश के 26 राज्य के रूप में इसका गठन 1 नवंबर सन 2000 को हुआ था।  तब से प्रत्येक वर्ष छत्तीसगढ़ में 1 नवंबर को राज्योतसव का आयोजन किया जाता है।      सन 1857 की क्रांति ने संपूर्ण ब्रिटिश सत्ता को हिला कर रख दिया और भारत की ओर नरमी बरतने को सोचने के लिए मजबूर कर दिया।  ब्रिटिश शासन 1857 की क्रांति से बहुत ही सहम गई थी।  जिसके चलते ब्रिटिश सरकार ने यहां की प्रशासनिक इकाइयों के मजबूतीकरण , लोगों के साथ समानता का व्यवहार और कुछ अधिकार देने जैसे विषयों पर सोचने को मजबूर हो गई थी।   मध्यप्रांत का गठन        मध्य प्रांत का गठन एक अहम् कदम था।  चूँकि ब्रिटिश शासन यहां केवल अपने स्वार्थ के उद्देश्य से शासन कर रही थी और भारतीय लोगों की पूर्णरूपेण उपेक्षा हो रही थी। ऐसे में सभी वर्ग यथा मजदूर , किसान , साहूकार आदि भी ब्रिटिश सरकार के सख्त नियम कानूनों से त्रस्त हो गई थी। अतः 1857  की क्रांति ने जन्म लिया जैसे तैसे ब्र...