भारतीय इतिहास की रुपरेखा

इतिहास क्या है ?

      मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है जो हमेशा विकास की ओर जाने के लिए तैयार रहता है विकास की राह में जाने के लिए या तो वह नए-नए शोध करता है या अपने पिछले कुछ किए हुए कार्यों से सीखता है , अनुभव करता है। यही अपने पिछले जीवन से सीखने की कला ने मनुष्य को इतिहास से जोड़ दिया मानव अपने पूर्वजों के जन-जीवन से जुड़ी हुई बातों का अध्ययन कर उसको समझने एवं उनसे जुड़े हुए अवशेषों , लेखों आदि का अध्ययन करने में धीरे-धीरे रुचि लेने लगा और इस प्रकार इतिहास का विकास होने लगा। 

सामान्य शब्दों में 

" अपने बीते हुए कल से व्यक्ति वर्तमान में जो सीखता है, उसका अध्ययन करता है इतिहास कहलाता है। "

इतिहास  की विभिन्न परिभाषाएं 

    प्रोफेसर रेनियर के अनुसार "इतिहास समाजों की यादें हैं।"

    प्रो.जी.आर. एल्टन के अनुसारइतिहास का संबंध उन सभी मानवीय बातों, विचारों, कर्मों और कष्टों से है जो         अतीत में हुए थे और वर्तमान जमा राशि को छोड़ चुके हैं; और यह परिवर्तन और विशेष रूप से उनके दृष्टिकोण से     संबंधित है। ”

   नेपोलियन बोनापार्ट के अनुसार  "इतिहास झूठ पर सहमत होने का एक समूह है। "


भारतीय इतिहास का काल विभाजन

        भारतीय इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए मुख्यतः तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है। 

  1. प्रोगैतिहासिक काल (25 लाख  वर्ष पूर्व -3300 ईसा पूर्व )  -  प्रागैतिहासिक काल अर्थात मनुष्य के इतिहास का वह समय जब वह मुख्य रूप से पत्थरों पर आश्रित था प्रोगैतिहासिक काल कहलाता है। प्रोगैतिहासिक या पाषाण काल को 25 लाख साल से 3300  साल पूर्व तक के समय को माना  जाता है। पाषाण काल को पुरापाषाण काल ,मध्य पाषाण काल एवं नवपाषाण काल में पुनः विभाजित किया जाता किया गया है।
  2. आद्य ऐतिहासिक काल (3300 ईसा पूर्व - 1500 ईसा पूर्व ) -  पाषाण काल के बाद आद्यैतिहासिक काल का समय आता है।  आद्यैतिहासिक काल को 3500 ईसा पूर्व - 1500 ई.पू.  तक के समय को माना जाता है। इस काल में मनुष्य ने अपनी लेखन कला को विकसित कर लिया था किंतु उसका अध्ययन वर्तमान समय में नहीं किया जा सका है।  इस काल की सभ्यता में मुख्यत: हड़प्पा सभ्यता, (सिंधु घाटी सभ्यता )  आती है।
  3. ऐतिहासिक काल (1500 ईसा पूर्व - वर्तमान )  -  सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद भारत में वैदिक युग का प्रारंभ होता है वैदिक काल के समय को 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व को माना गया है। इस काल को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया है ऋगवैदिक काल 1500-1000 ईसा पूर्व उत्तर वैदिक काल 1000 से 600 ईसा पूर्व। ऐतिहासिक काल में इतिहास के उन काल खंडों को शामिल किया जाता है जिनका वर्तमान समय में अध्ययन किया जा चुका है एवं उनसे संबंधित सभी लेख एवं अन्य साक्ष्यों का अध्ययन किया जा चुका है जिससे उस समय के महत्वपूर्ण पहलुओं का उजागर हो पाया।  ऐतिहासिक काल के अंतर्गत वैदिक सभ्यता एवं ऐतिहासिक भारत को रखा जाता है अर्थात 1500 ईसा पूर्व से वर्तमान तक के समय को हम ऐतिहासिक काल की श्रेणी  में रखते हैं।

          इतिहास का अध्ययन सर्वप्रथम हेरोडोटस ने किया था इसलिए उनको इतिहास का जनक कहा जाता है। 

इतिहास जानने के विभिन्न स्रोत

     जैसा कि हमने देखा की इतिहास का अध्ययन कर हम अपने पूर्वजों की जीवन , रहन-सहन ,भौगोलिक स्थिति ,संस्कृति आदि के बारे में जान पाते हैं। उनकी संस्कृति , खानपान ,यात्रा के साधन किस प्रकार कौन सी चीजों का उपयोग करते थे आदि चीजों का हम जानकारी इतिहास के अध्ययन से प्राप्त करते हैं।  इतिहास जानने के क्या-क्या स्त्रोत हो सकते हैं तो इतिहास जानने के मुख्यतः तीन स्त्रोत होते हैं -  

  1. पुरातात्विकपुरातात्विक स्रोत वह स्त्रोत होते हैं जो उत्खनन द्वारा अभिलेखों के रूप में , मुद्राओं के रूम में , ताम्रपत्र ओं के रूप में , कलाकृतियों के रूप में , शैल चित्रों के रूप में हमें प्राप्त होती है , पुरातात्विक स्रोत कहलाता हैं। 
  2. साहित्यिकसाहित्यिक स्त्रोत में लिखे हुए अभिलेख , ताम्रपत्र , शिलालेख  आदि  से प्राप्त जानकारियां आती है।
  3. मानव विज्ञानी स्त्रोतमानव विज्ञान स्त्रोत अर्थात वे स्त्रोत जिनका अध्ययन कर एक निश्चित परिणाम पर पहुंचकर हमें जानकारी प्रदान करते हैं ऐसे लोग जो इतिहास के अध्ययन में रुचि लेते हैं तथा वे स्वयं इनका अध्ययन करते हैं और बातों का पता लगाते हैं। 
   

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारत के प्रमुख भूगर्भिक शैलक्रम (चट्टानें)

छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक एवं आद्यैतिहासिक इतिहास

भारत का भौतिक स्वरूप ( हिमालय पर्वत श्रृंखला )