छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक एवं आद्यैतिहासिक इतिहास

छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक इतिहास  

        जिस समय से मानव का उदय जिस स्थान से आरंभ हुआ वहीं से इतिहास की नीव पड़ गयी।छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों पर मानव सभ्यता की अनेक झलक दिखाई पड़ती है , जिसमें पाषाण काल, वैदिक काल एवं आधुनिक कालीन इतिहास के साक्ष्यों से छत्तीसगढ़ की धरा भी सुशोभित है। 

 प्रागैतिहासिक काल - 

  • यह वह समय था जिस समय मनुष्य कंदराओं अर्थात गुफा में निवास करता था , वस्त्रों के अभाव में पेड़ों की छाल , जानवरों के चमड़े का उपयोग करता था। 
  • पैरों से चलने की बजाय वह पेड़ पर ही रहता था।  कंदमूल खाकर , कच्चा मांस खाकर अपना जीवन यापन करता था।  पत्थरों के औजार , हड्डियों के औजार का उपयोग अपनी सुरक्षा के लिए तथा जानवरों के शिकार के लिए करता था। 
  • पाषाण काल को सुविधा की दृष्टि से तीन भागों में विभाजित किया जाता है  पुरापाषाण काल ,मध्य पाषाण काल ,नवपाषाण काल पाषाण युग को 2400000 वर्ष पूर्व से 12000 साल पूर्व तक के समय को माना गया है। 
  • छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों यथा  रायगढ़ की पहाड़ियों पर, अंबिकापुर की पहाड़ियों पर, राजनांदगांव क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल के साक्ष्य देखने को मिलते हैं। 
  • प्रागैतिहासिक काल उस दौर को कहा जाता है जिसके संबंध में हमें कोई लिखित साक्ष्य प्राप्त नहीं होते।  हम इसका अध्ययन केवल प्राप्त शैल चित्रों , अस्थियों के अवशेषों , बर्तनों के अवशेषों , पत्थरों के निर्मित औजारों आदि को देखकर करते हैं। 
  • पंडित लोचन प्रसाद पांडे ने छत्तीसगढ़ को " मानव जाति की सभ्यता का जन्म स्थान " कहा है |  इस क्षेत्र में प्राचीनतम आदिमानव सिंघनपुर , कब्रा पहाड़ , खैरपुर तथा कर्मागढ़ (रायगढ़)  आदि क्षेत्र में देखने को मिलते हैं। 
  • प्रागैतिहासिक काल के दौर में छत्तीसगढ़ में निम्नलिखित साक्ष्य देखने को मिलते हैं।  रायगढ़ जिले के सिंघनपुर तथा कबरा पहाड़ में अंकित शैल चित्र इसके प्रख्यात उदाहरण है।  सिंघनपुर के गुफा की चित्रकारी गहरे लाल रंग की है जिसमें शिकार दृश्य का अंकन किया गया है साथ ही मानव आकृतियां डंडे के आकार की तथा सीढ़ीनुमा आकार में अंकित की गई है।  कबरा पहाड़ पर भी लाल रंग से  चित्र  छिपकली , घड़ियाल, सांभर आदि बनाए गए हैं। 
  • राजनांदगांव जिले के चितवाडोंगरी पर भी प्रागैतिहासिक काल के साक्ष्य मिले हैं। सरगुजा के समीप रामगढ़ पहाड़ी में जोगीमारा गुफा स्थित है। इस गुफा की चित्रकारी गेरुए रंग की है।जिसमें पशु पक्षी वृक्ष आदि का चित्रण किया गया है।
  • कहा जाता है कि नदिया मानव सभ्यता का अस्तित्व लिए रहती हैं पाषाण युग के औजार भी महानदी घाटी , रायगढ़ जिले के सिंघनपुर से प्राप्त हुए हैं। पुरापाषाण कालीन अधिकांश औजार बेडौल थे जो मनुष्यों के आरंभिक युग के  औजार को बतलाते हैं।  
  • मध्य पाषाण - युग मैं जब मानव ने थोड़ा विकास किया तो उसने अपने औजारों को नए सिरे से गणना आरंभ कर दिया था जिसके चलते लंबे फलक ,अर्धचंद्राकार फलक युक्त औजार लघु पाषाण औजार आदि का निर्माण उनके द्वारा किया गया था।  इसका साक्ष्य हमें कबरा पहाड़ रायगढ़ क्षेत्र में देखने को मिलता है।  
  • महानदी घाटी , बिलासपुर जिले के धनपुर तथा रायगढ़ जिले के सिंगनपुर स्थित चित्र शैलाश्रय के निकट से उत्तर पाषाण युग के लघु कृत पाषाण औजार प्राप्त हुए हैं।  
  • नवपाषाण काल - में जब मानव ने और उन्नति की तब वह हथियारों में भी साज सज्जा को महत्व देने लगा गया था इस युग के चित्रित हथौड़े दुर्ग के समीप अर्जुनी से , राजनांदगांव के समीप बोनटीला , चितवाडोंगरी तथा रायगढ़ के टेरम नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं।  
  • महापाषाण स्मारक पाषाण युग के पश्चात लौह युग के समय  में जब मनुष्य शव को जमीन पर दफनाता था तो चिन्ह स्वरूप बड़े-बड़े शिलाखंडों को उसके समीप गड़ा देता था जिसे महापाषाण स्मारक कहा जाता है।  इसके साक्ष्य दुर्ग के समीप करहीभदर,  चीररार और सोरर में देखने को मिलते हैं।  
  • कहीं-कहीं पर यथा करकाभाठा में पाषाण घेरे के साथ लोहे के औजार एवं मृदभांड प्राप्त हुए हैं धनोरा नामक स्थल से लगभग 500 महापाषाण युगीन स्मारक प्राप्त हुए हैं। 
  • इसी प्रकार बस्तर क्षेत्र से अनेक कास्ट स्तंभ प्राप्त हुए हैं कहा जाता है यह स्तंभ प्राचीन समय में वीर नायकों के सम्मान में स्थापित किए गए थे। इसके साक्ष्य मसेनार , डिलमिली , चित्रकूट , किलेपाल , तारागांव आदि से यह काष्ठ  स्तंभ प्राप्त हुए हैं। 

पाषाणकालीन औजार 

 छत्तीसगढ़ में पाषाण कालीन साक्ष्य

  • पूर्व पाषाण काल के साक्ष्य रायगढ़ के सिंगनपुर, कब्रा पहाड़ ,बोतलदा, छापामारा , भंवरखोल, गीदा, सोनबरसा स्थानों पर प्राप्त हुए हैं।  साथ ही महानदी घाटी में भी इस युग के साक्ष्य देखने को मिलते हैं।  
  • मध्य पाषाण काल के साक्ष्य गढ़धनौरा , गढ़चंदेला , कालीपुर , राजपुर , खडांगघाट, घाटलोहांग से देखने को मिलते हैं।  
  • उत्तर पाषाण कालीन साक्ष्य रायगढ़ के कब्रा पहाड़ , सिंघनपुर गुफा , महानदी घाटी , धनपुर , कर्मागढ़ , बसनाझर , ओंगना एवं बोतल्दा से प्राप्त हुए है।  
  • नवपाषाण काल के साक्ष्य अर्जुनी (दुर्ग) से , टेरम (रायगढ़) से , बोनटीला , चितवाडोंगरी (राजनांदगांव )से प्राप्त हुए हैं। 
  • महापाषाण युगीन पाषाण स्मारक करहीभदर , चीररारी एवं सोरर से प्राप्त हुए हैं।  
  • राज्य में सर्वाधिक शैलाश्रय  रायगढ़ जिले से प्राप्त हुए हैं एवं राज्य का प्राचीनतम शैलाश्रय सिंघनपुर की गुफा (रायगढ़) है। 

पाषाणकालीन शैलचित्र 


छत्तीसगढ़ का आद्यैतिहासिक काल 

    आद्य ऐतिहासिक युग को हम 2500-1500  ईसा पूर्व तक के समय को मानते हैं।  आद्य ऐतिहासिक काल को मुख्यतः वैदिक काल तथा लौह युग के पूर्व के समय के रूप में देखा जाता है।आद्यैतिहासिक काल उस समय को कहा जाता है  जिसके संबंद्ध में हमें लिखित एवं पुरातात्विक दोनों ही प्रकार के साक्ष्य मिलते है किन्तु लिखित साक्ष्य का अध्ययन हम कर नहीं पाए है।

    सिंधु घाटी सभ्यता ,हड़प्पा सभ्यता  ,कांस्य युग आदि इस  सभ्यता के अंतर्गत आता है। इसके साक्ष्य छत्तीसगढ़ में देखने को नहीं मिलता है। 

 वैदिक काल को 2 भागो में ऋगवैदिक  काल जिसे 1500  से 1000 ईसा पूर्व का समय माना गया है उसके बाद उत्तर वैदिक काल जिसे 1000 से 600 ईसा पूर्व के समय को माना गया है।

   

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