आद्यैतिहासिक कालीन भारत

        प्रोगैतिहासिक काल के बाद के समय को आद्य ऐतिहासिक (3500 ई.पू. - 1500 ई.पू. ) काल के रूप में जाना जाता है इस काल में मनुष्य  ने लिखने की कला अर्थात लिपि का आविष्कार कर लिया था किंतु इस काल के लेखों का अध्ययन वर्तमान समय में नहीं किया जा सका है अतः इतिहास के इस कालखंड को  जिनके बारे में हमें लिखित एवं पुरातात्विक दोनों ही साक्ष्य प्राप्त होते हैं किंतु उनके लिखित साक्ष्य का अध्ययन वर्तमान समय में नहीं किया जा सका है आद्य ऐतिहासिक काल के अंतर्गत आते हैं।  इस काल की महत्वपूर्ण सभ्यता में सिंधु घाटी सभ्यता आती है जो वर्तमान पंजाब , हरियाणा , राजस्थान गुजरात ,महाराष्ट्र  एवं पाकिस्तान , अफ़गानिस्तान के क्षेत्र में फैली हुई थी।  सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।  
        आद्य ऐतिहासिक काल को कांस्य युग भी कहा जाता है। सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी आदि मानव धीरे-धीरे विकास करते हुए कबीलाई जीवन से नगरीय जीवन तक पहुंच चुका था। सिंधु घाटी सभ्यता एक सुरक्षित सभ्यता थी इस सभ्यता के अंतर्गत 6 बड़े स्थलों को महानगर के रूप में देखा जाता है जो है मोहनजोदड़ो , हड़प्पा,  लोथल , धोलावीरा , राखीगढ़ी , कालीबंगा। 

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज

        सिंधु घाटी सभ्यता की खोज 18 वीं सदी में आरंभ हो चुकी थी उस समय कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन का निर्माण हो रहा था 1826 में चार्ल्स मैसन ने इस सभ्यता की प्रथम बार खुदाई कर जानकारी प्राप्त की जिसका प्रकाशन "Narrative of Journey" में प्रकाशित  किया था ।

  • 1869 में अलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देश से भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की गई। अलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्व विभाग का जनक कहा जाता है इसके बाद से भारत में इतिहास के विषय में नए नए शोध होने लगे और प्राचीन भारतीय इतिहास के नए-नए पहलुओं की खोज होने लगी। 
  • 19 सदी  में लार्ड कर्जन द्वारा जान मार्शल को भारतीय पुरातत्व विभाग का महानिदेशक बनाया गया। सिंधु घाटी सभ्यता की खोज 1921 से प्रारंभ होती है।  
  • 1921 में दयाराम साहनी के नेतृत्व में पहली बार हड़प्पा का उत्खनन किया गया अतः इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है एवं दयाराम साहनी को इसकी खोजकर्ता के रूप में जाना जाता है।  चूँकि  यह सभ्यता सिंधु नदी के किनारे बसी हुई थी अतः इसे सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। 
  • कार्बन 14 पद्धति द्वारा इसका काल निर्धारण 2300 ईसा पूर्व का माना गया है राखलदास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में  की गई इस प्रकार भारत में आद्यैतिहासिक सभ्यता की खोज प्रारंभ हुई।
  • सिंधु घाटी सभ्यता को प्रथम नगरीय सभ्यता के रूप में भी जाना जाता है इसका विस्तार लगभग 13 लाख  वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भारत-पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में देखने को मिलता है। मांदा (j&k) में  चिनाब नदी के तट पर इस सभ्यता का सबसे उत्तरी क्षेत्र है।  वही बलूचिस्तान क्षेत्र में सुतकागेडोर  (दास नदी के तट पर) सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पश्चिमी भाग है।उत्तर प्रदेश के आलमगीरपुर सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पूर्वी क्षेत्र है तथा महाराष्ट्र का दायमाबाद नामक स्थान सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे दक्षिणी छोर माना जाता है जो गोदावरी नदी के तट पर स्थित है इस प्रकार सिंधु घाटी सभ्यता का फैलाव बहुत बड़े क्षेत्र में देखने को मिलता है।  

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख नगर

  1.  जम्मू कश्मीर -  मांदा  चिनाब नदी के तट पर 
  2. पंजाब में रोपड़ (रूपनगर) एवं संघोल क्षेत्र 
  3. हरियाणा में बनवाली , राखीगढ़ी एवं भगवानपुरा राखीगढ़ी भारत में सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा नगर है 
  4. राजस्थान -  कालीबंगा ,बालाथल  
  5. हड़प्पा रावी नदी के तट पर पाकिस्तान के अंतर्गत पंजाब क्षेत्र में 
  6. मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के तट पर पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 
  7. चन्हूदरो सिंध नदी के तट पर पाकिस्तान में स्थित है 
  8. मोहनजोदड़ो के विपरीत दिशा में डाबरकोट  एवं बालाकोट भी बलूचिस्तान क्षेत्र में है 
  9. गुजरात में लोथल  सिंधु घाटी सभ्यता का बंदरगाह के रूप में जाना जाता है धौलावीरा , सुतकोतदा भगवतपुरा राजदीप  बेसलपुर सभी गुजरात क्षेत्र में स्थित है 
  10. महाराष्ट्र में दायमाबाद  गोदावरी नदी के तट पर स्थित है 



सिंधु  घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं 

  • हड़प्पा सभ्यता एक प्रारंभिक नगरीय सभ्यता है जिसमें नगर का निर्माण एक विशेष पैटर्न में हुआ है इसे दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है  सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय  सभ्यता थी जो व्यवस्थित रूप से पहली बार अस्तित्व में आई इसका विस्तार वर्तमान भारत पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान के क्षेत्रों में देखने को मिलता है सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मुख्यत: द्रविण माने जाते हैं। 

  • संपूर्ण नगर को दो भागों में बंटा था पूर्वी नगर तथा पश्चिमी नगर  या  उच्च नगर तथा निम्न नगर या संभ्रात परिवार एवं गरीब परिवार का नगर आदि क्योंकि इन नगरों की बसाहट में ध्यान देने पर पता चलता है कि नगर का आधा भाग एक सुरक्षित चारदीवारी के अंदर तथा ऊंचे स्थान पर विशाल स्नानागार अन्न भंडार आदि जैसे  सुख सुविधा युक्त साधनों से निर्मित था वहीं दूसरी ओर नगर का आधा भाग निचले स्थान पर बिना सुरक्षा घेरा के जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले साधनों के साथ बना था।   

  • इन नगरों में उच्च वर्ग एवं निम्न वर्ग के निवास स्थान अलग-अलग थे यह नगर ग्रीड नुमा आकृति के बने हुए थे अर्थात रास्ते एक दूसरे को चौराहों पर काटते थे नालियों की उत्तम व्यवस्था , स्नानागार , पानी के लिए कुएं आदि सभी घरों में लगभग देखने को मिलते हैं।  

सिंधु घाटी सभ्यता नगर

  • सबसे ज्यादा सिंधु सभ्यता के नगर भारत में गुजरात राज्य में देखने को मिले हैं। इस सभ्यता के नगरों में के घरों में दरवाजे और खिड़कियां मुख्य सड़क की ओर न खुलकर पीछे की ओर खुलती थी।  
  • इस समय का मुख्य फसल गेहूं एवं ज्वार था।संभवत: यहाँ  परिवार  मातृसत्तात्मकरहत थी।
  • सूती वस्त्र के व्यापार मिटटी शिल्प ,आभूषण बनाने के साक्ष्य आदि प्राप्त हुए हैं।व्यापार वस्तु विनिमय आधारित था।  
  • पशुपालन की बात की जाए तो कुबड़वाला सांड प्रिय पशु तथा पशुपतिनाथ उनके प्रमुख देवता थे। स्वास्तिक चिन्ह के प्रमाण , परिवहन के साधन के रूप में बैल गाड़ियों के उपयोग का साक्ष्य प्राप्त हुआ है।  
  • मूर्तियों में मिट्टी की मूर्तियां प्रमुख रूप से प्राप्त हुई है। इस सभ्यता के लोगों की लिपि  भावचित्रात्मक थी। लिखने के लिए एक चित्र शैली का प्रयोग करते थे लेखन का कार्य बाएं से दाएं ओर होता था 
  • इतिहासकार पीगट ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानी कहा है।सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों थे।मांस के रूप में मछली , सूअर , हिरण , बकरी आदि का सेवन करते थे

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं उनकी विशेषताएं 



 सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारण

     अलग-अलग इतिहासकारों ने अलग-अलग तरीकों से सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारणों का उल्लेख किया है जो निम्नलिखित है -

  •  मैंके एवं जॉन मार्शल का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का मुख्य कारण बाढ़ है।  
  • चाइल्ड एवं व्हीलर का मानना है कि विदेशी आक्रमण द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता का पतन हुआ। 
  • फेयर एवं सर्विस का कहना है कि पारिस्थितिकी असंतुलन से  सिंधु घाटी सभ्यता का पतन हो गया। 


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