प्रोगैतिहासिक कालीन भारत

      जैसा  हमें ज्ञात है कि भारतीय इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है।  प्रागैतिहासिक काल (25  लाख - 3500 ई.पू.), आद्य ऐतिहासिक काल (3500 ई.पू. - 1500 ई.पू.) एवं ऐतिहासिक काल (1500 ई.पू. - वर्तमान) | प्रोगैतिहासिक काल मानव जीवन के विकास का आरंभिक चरण है जिसके बारे में हम अभी पढ़ेंगे।  


पाषाण काल की विशेषताएं     

 प्रागैतिहासिक काल का नाम पाषाण काल भी है क्योंकि इस युग में मानव पूरी तरह से पत्थरों पर निर्भर रहता था। 

  • पत्थरों की गुफाओं में रहता था।  
  • पत्थरों के हथियारों का उपयोग करता था साथ ही हड्डियों के औजारों , हथियार  का उपयोग करता था।  
  • कंद-मूल, फल एवं कच्चा मांस खा कर अपना जीवन यापन करता था।  इस प्रकार मनुष्य एक जंगल में जंगली मानव के रूप में निवास करता था।  
  • इस काल के संदर्भ में हमें कोई लिखित जानकारी प्राप्त नहीं होती केवल पुरातात्विक स्रोतों के अध्ययन से ही इस काल  के मनुष्य का जीवन परिचय हमें प्राप्त होता है।  
  • प्रागैतिहासिक काल को पुनः तीन भागों में विभाजित किया जाता है - 

पाषाण  काल का विभाजन 

  1. पुरापाषाण काल (25 लाख वर्ष पूर्व - 12000 वर्ष पूर्व ) - पुरापाषाण काल  मानव सभ्यता के उदय का वह समय है  जिसमें मनुष्य पूर्ण रूप से पत्थरों पर आश्रित था यथा हथियार के लिए , रहने के लिए आदि अपने सभी दैनिक कार्यों  के निर्वाह के लिए मुख्य रूप से पत्थरों पर ही आश्रित था। इस काल को पूरापाषाण काल कहा जाता है।  इस समय मनुष्य कच्चे मांस एवं फलों को ही खाकर अपना जीवन यापन करता था एवं वह वस्त्र विहीन जीवन जीता था।  पुरापाषाण कालीन मानव मुख्य रूप से शिकार पर ही निर्भर रहता था अर्थात एक आखेटक की जिंदगी जीता था।  भारत में इसके अवशेष सोहन, बेलन , नर्मदा नदी घाटी से प्राप्त हुए हैं। भोपाल के पास स्थित भीमबेटका से इसके अवशेष प्राप्त हुए हैं।  पुरापाषाण कालीन मानव अपने दैनिक जीवन जीने के लिए प्रकृति उन्हें जो कुछ भी रचना प्रदान करती थी उन्हें वह अपनी आवश्यकतानुसार उपयोग में ला लेते थे और ऐसे ही जीवन यापन करते थे इस समय मनुष्य पेड़ों पर रहता था गुफाओं में रहता था। भारत में पुरापाषाण संस्कृति की खोज का श्रेय रोबर्ट ब्रूस फ्रूट (1863) को दिया जाता है।                                                                                                                                                                              
    पुरापाषाण कालीन औजार 

  2. मध्य पाषाण काल (12000 वर्ष पूर्व - 8000 वर्ष पूर्व ) -   इस काल में मनुष्य अपनी आवश्यकता अनुरूप हथियार का निर्माण करने, आखेटन की कुछ कलाएं वस्त्रों के रूप में छालों एवं जानवरों के चमड़ों का उपयोग आदि सीख गया था। आखेटक रहते हुए भी खाद्य पदार्थों का संग्रह करना भी इनके जीवन शैली में अब शामिल हो चुका था। चित्रशैली , इशारों के माध्यम से आचार विचार संप्रेषण , शिकारी पशुओं से अपनी सुरक्षा करने का तरीका सीख चुका था।आदिमानव अब समूह में निवास करते थे जिससे उनमें परिवारिक जीवन की शैली निर्मित हुई।  वैसे तो आग की जानकारी आदिमानव को पुरापाषाण काल से ही थी क्योंकि बिजली गिरने से जंगलों में पेड़ों के आपस में टकराने से घर्षण से लगी आग , पत्थरों के लुढ़कने या गिरने से घर्षण से लगी आग आदि से वह आग से परिचित हो चुके थे, किंतु उसका उपयोग नहीं जानते थे जो मध्यकाल पाषाण काल में जान गए।  अब आदिमानव कच्चे मांस की जगह भुने हुए मांस का सेवन करने लगे थे जो उनको कच्चे मांस की अपेक्षा ज्यादा स्वादिष्ट लगता था। अब इसका उपयोग वे अपनी सुरक्षा के लिए भी करते थे एवं रोशनी के लिए भी करते थे। यहां तक की सर्दी गर्मी बरसात आदि मौसमी अवस्थाओं में भी मनुष्य अपनी आवश्यकता अनुरूप अब आग का उपयोग सीख रहा था।                                                                                                                                                                                                                                                  
    मध्यपाषाण कालीन औजार 

  3. नवपाषाण काल (8000 वर्ष पूर्व - 3500 वर्ष पूर्व ) -     नवपाषाण काल मनुष्य के विकास का एक अहम भाग है इस काल में मनुष्य कृषि करना , पशुपालन शिकार के लिए धनुष ,भाला जैसे हथियारों के प्रयोग गुफाओं या रहने की स्थान को चित्रित कर करना , आभूषण के रूप में अस्थियों सुंदर-सुंदर पत्थरों के उपयोग , परिवहन के साधन आदि से परिचित हो चुका था जो जीवन यापन के लिए मूलभूत थी। इस समय अब मनुष्य स्थाई रूप से निवास करने लग गया था जिससे छोटी-छोटी बस्तियों (कबीलों) का विकास हुआ।जीवन के महत्व को समझते हुए शव को दफनाने की क्रिया भी अब वह करने लगा। अपने परिजनों के प्रति भावनाओं को व्यक्त करना भी वह सीख चुका था हथियारों के लिए हैंडल युक्त हथौड़े , छैनी जैसे आधुनिक औजारों का निर्माण एवं उपयोग भी वह सीख चुका था।  कबीलाई जीवन जीने की कला विकसित हो चुकी थी इस प्रकार मानव ने वर्तमान जीवन की ओर अपना कदम बढ़ाया। मनुष्य ने इसी काल में सर्वप्रथम कुत्ता पलना शुरू किया।                                                                                                                                                                                                      
    नवपाषाण कालीन औजार 

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • 1863 में राबर्ट बुशबूट ने प्रथम बार  पुरापाषाण युगीन अनुसधान प्रारंभ किया था।
  • 1867 में  सी कार्लाइल- मध्यपाषाण कालीन स्थलों की सर्वप्रथम पहचान विध्यक्षेत्र में की ।
  • 1935 में  एल. कैबिज,डी. टेरा और पीटरसन - पाषाण युगीन अनुसंधान।
  • भीमबेटका (MP) - इस स्थल की खोज वणककर महोदय ने किया ।

भीमबेटका (MP)


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारत के प्रमुख भूगर्भिक शैलक्रम (चट्टानें)

छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक एवं आद्यैतिहासिक इतिहास

भारत का भौतिक स्वरूप ( हिमालय पर्वत श्रृंखला )