संदेश

PHILOSOPHY लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

न्याय दर्शन

न्याय दर्शन       न्याय दर्शन के प्रणेता महर्षि गौतम माने जाते हैं।  इनका अन्य नाम अक्षपाद भी है इसी कारण न्याय-दर्शन को अक्षपाद-दर्शन के नाम से भी जाना जाता है। न्याय दर्शन के ज्ञान का आधार गौतम मुनि द्वारा रचित न्यायसूत्र है जो न्याय दर्शन का प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है।        न्याय दर्शन के समस्त साहित्य को दो भागों में बांटा जाता है -  1 प्राचीन न्याय 2 नव्य न्याय कहा जाता है।        गंगेश उपाध्याय की तत्व चिंतामणि नामक ग्रंथ से नव्य न्याय का प्रारंभ माना गया है प्राचीन न्याय में तत्व शास्त्र पर अधिक जोर दिया गया है जबकि नव्य न्याय में तर्क शास्त्र पर अधिक जोर दिया गया है।  न्याय का तत्व विचार  अन्य दर्शनों की भांति न्याय दर्शन का भी चरम उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति है। मोक्ष की अनुभूति तत्वज्ञान अर्थात वस्तु के वास्तविक स्वरूप को जानने से हो सकती है।  मूल रूप से अज्ञान का नाश होने के पश्चात ही मोक्ष प्राप्ति संभव है न्याय दर्शन में 16 प्रकार के पदार्थों (तत्वों) की चर्चा हुई है।  प्रमाण ...

योग दर्शन

 योग दर्शन       योग दर्शन के प्रणेता महर्षि पतंजलि माने जाते हैं। पतंजलि जी ने जीवन के चरम लक्ष्य अर्थात मोक्ष की प्राप्ति के लिए विवेक ज्ञान को ही पर्याप्त नहीं माना है अपितु अपने जीवन में योगाभ्यास को भी शामिल करने पर जोर दिया है। योग को जीवन में चरितार्थ करना योग दर्शन का एक प्रमुख लक्ष्य है।       योग दर्शन एक द्वैतवादी दर्शन है।  यह सांख्य के तत्व शास्त्र को पूर्णता स्वीकार करता है बस यह ईश्वर को और जोड़ देता है योग दर्शन को इसीलिए सेश्वर सांख्य भी कहा जाता है जिसका अर्थ है ईश्वर के साथ सांख्य दर्शन।       योग दर्शन का आधार पतंजलि द्वारा रचित योग सूत्र है योग सूत्र पर महर्षि व्यास ने एक भाष्य लिखा है जिसे योग भाष्य कहते हैं यह योग दर्शन का प्रमाणित ग्रंथ है वाचस्पति मिश्र ने योग दर्शन पर एक टीका लिखिए जिसका नाम वैशारदी है।      सांख्य  की तरह योग दर्शन का भी चरम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है योग दर्शन भी संसार को तीन प्रकार की दुखों से परिपूर्ण मानता है एक आध्यात्मिक दुख दूसरा अधिभौतिक दुख तीसरा अ...

सांख्य दर्शन

सांख्य दर्शन  सांख्य दर्शन भारत का एक प्राचीन दर्शन है , इसके प्रणेता महर्षि कपिल माने जाते हैं।  सांख्य दर्शन भारत का सबसे प्राचीन दर्शन है।  सांख्य दर्शन द्वैतवाद का समर्थक है अर्थात सांख्य में दो प्रकार की सत्ता को स्वीकार किया गया है   1  प्रकृति और  2  पुरुष सांख्य दर्शन का आधार कपिल मुनि द्वारा रचित सांख्य प्रवचन सूत्र को कहा जाता है कपिल मुनि ने सांख्य दर्शन पर दो ग्रंथ लिखे थे  1  सांख्य प्रवचन सूत्र एवं  2  तत्व समास       किंतु दुर्भाग्यवश दोनों ही ग्रंथ नष्ट हो चुके हैं वर्तमान समय में सांख्य दर्शन का आधार ईश्वर कृष्ण द्वारा रचित सांख्यकारिका है ईश्वरकृष्ण असुरि  के शिष्य थे और असुरि कपिल के शिष्य थे।      कार्य कारण सिद्धांत (सत्कार्यवाद )      सांख्य दर्शन का आधार उसका कार्य कारण सिद्धांत है जिसे हम सत्कार्यवाद के नाम से जानते हैं सत्कार्यवाद सांख्य का कार्य कारण सिद्धांत है। सांख्य के कार्य कारण सिद्धांत के सम्मुख एक मुख्य प्रश्न चिन्ह आता है कि क्या कार्य की ...

भारतीय दर्शन का विकास

 भारतीय दर्शन का विकास    भारतीय दर्शन का अर्थ है ऐसे दर्शन  जिसका विकास भारत वर्ष में हुआ।  भारतीय दर्शन में दो प्रमुख संप्रदाय को माना गया है जिसमें पहला है आस्तिक दर्शन और दूसरा है नास्तिक दर्शन दोनों की व्याख्या वेद के अनुरूप हुई है अतः जो वेद की प्रमाणिकता को स्वीकार करते हैं , आस्तिक दर्शन कहलाते हैं और जो वेद की प्रमाणिकता को नकारते हैं नास्तिक दर्शन के अंतर्गत रखे गए हैं        भारतीय दर्शन का विकास एक क्रमिक विकास का परिणाम है।  भारतीय दर्शन का विकास कौतूहलवश जिज्ञासा शांत करने के उद्देश्य से ना होकर सृष्टि के विविध प्रकार के दुखों को दृष्टिगोचर करते हुए  उसके निवारण के लिए  हुआ है।       जब भारतीय दार्शनिकों के मन में यह प्रश्न उठा कि इस संसार में वास्तविक सुख क्या है ? या यूँ कहे जब भारतीय दार्शनिकों ने अपने आसपास विविध प्रकार के दुख यथा हिंसा ,द्वेष, राग, शारिरिक दुख,  मानसिक दुख आदि से अपने आप को घिरा हुआ पाया तो उनके मन में इन दुखों से निदान के लिए चिंतन उठने लगी इन्हीं चिंताओं का परि...

भारतीय दर्शन एवं उसका विभाजन

भारतीय दर्शन को हम निम्नलिखित भागों में विभाजित कर सकते हैं  1) वैदिक काल - यह भारतीय दर्शन के आरंभ का समय था तथा इस काल में वेदों और उपनिषदों का विकास हुआ।  2) महाकाव्य काल -  इस काल में विभिन्न प्रकार के महाकाव्य के दर्शन का विकास हुआ इसी काल में रामायण एवं महाभारत जैसे काव्यों की रचना हुई।  3) सूत्र काल -   इस काल में भारतीय दर्शन की मुख्य धारा षड्दर्शन का विकास हुआ।   4)  वर्तमान काल या समयसामयिक काल - इस काल की शुरुआत राजा राममोहन राय (1772 - 1833) की समय से कही जाती है इसके प्रमुख दार्शनिकों में महात्मा गांधी, बीआर अंबेडकर, स्वामी विवेकानंद, श्री अरविंद आदि प्रमुख है।  भारतीय दर्शन की शाखाएं या संप्रदाय  भारतीय दर्शन को उसके सिद्धांतों के आधार पर मुख्यतः 3 भागों में वर्गीकृत किया गया है  1 ) आस्तिक दर्शन 2) नास्तिक दर्शन 3) जड़वादी दर्शन  आस्तिक और नास्तिक दर्शन के मध्य विभिन्न तर्क -   आस्तिक अर्थात ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करने वाला और नास्तिक अर्थात ईश्वर की सत्ता को जो स्वीकार नहीं करते हैं।   आ...

दर्शन क्या है ?

दर्शन क्या है ?      दर्शन शब्द दृश धातु से मिलकर बना है  जिसका जिसका अर्थ  है  "जिसके द्वारा देखा जाए " |  किसी तत्व के भौतिक या आंतरिक सवरूप का ज्ञान हमें जिसके माध्यम से प्राप्त होता है , दर्शन कहलाता है।      अलग अलग दार्शनिको ने दर्शन के अलग अलग पद्धतियां विकसित की है तथा ये सभी दर्शन अपने अपने सिद्धांतो पर खरे उतरे है। इन दर्शनों के अध्ययन की शाखा को हम दर्शनशास्त्र(PHILOSOPHY ) कहते है।  PHILOSOPHY का अर्थ है philos अर्थात प्रेम  तथा  sophia अर्थात ज्ञान अर्थात ज्ञान प्रेमी।  दर्शन शाश्त्र की शाखाएं  दर्शन शाश्त्र के अंतर्गत  दर्शन को 2 शाखाओं में विभाजित किया गया है जो उनके गुणों  के आधार पर युक्तियुक्त है। ये शाखाएं निम्नलिखित है -           1 भारतीय दर्शन  तथा            2 पाश्चात्य दर्शन  भारतीय दर्शन तथा पाश्चात्य दर्शन दोनों के अपने अपने महत्त्व है तथा दोनों ही दर्शन मनुष्य के जिज्ञासा को शांत करते है। भारतीय दर्शन क...