न्याय दर्शन
न्याय दर्शन न्याय दर्शन के प्रणेता महर्षि गौतम माने जाते हैं। इनका अन्य नाम अक्षपाद भी है इसी कारण न्याय-दर्शन को अक्षपाद-दर्शन के नाम से भी जाना जाता है। न्याय दर्शन के ज्ञान का आधार गौतम मुनि द्वारा रचित न्यायसूत्र है जो न्याय दर्शन का प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है। न्याय दर्शन के समस्त साहित्य को दो भागों में बांटा जाता है - 1 प्राचीन न्याय 2 नव्य न्याय कहा जाता है। गंगेश उपाध्याय की तत्व चिंतामणि नामक ग्रंथ से नव्य न्याय का प्रारंभ माना गया है प्राचीन न्याय में तत्व शास्त्र पर अधिक जोर दिया गया है जबकि नव्य न्याय में तर्क शास्त्र पर अधिक जोर दिया गया है। न्याय का तत्व विचार अन्य दर्शनों की भांति न्याय दर्शन का भी चरम उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति है। मोक्ष की अनुभूति तत्वज्ञान अर्थात वस्तु के वास्तविक स्वरूप को जानने से हो सकती है। मूल रूप से अज्ञान का नाश होने के पश्चात ही मोक्ष प्राप्ति संभव है न्याय दर्शन में 16 प्रकार के पदार्थों (तत्वों) की चर्चा हुई है। प्रमाण ...