भारतीय दर्शन एवं उसका विभाजन
भारतीय दर्शन को हम निम्नलिखित भागों में विभाजित कर सकते हैं
1) वैदिक काल - यह भारतीय दर्शन के आरंभ का समय था तथा इस काल में वेदों और उपनिषदों का विकास हुआ।
2) महाकाव्य काल - इस काल में विभिन्न प्रकार के महाकाव्य के दर्शन का विकास हुआ इसी काल में रामायण एवं महाभारत जैसे काव्यों की रचना हुई।
3) सूत्र काल - इस काल में भारतीय दर्शन की मुख्य धारा षड्दर्शन का विकास हुआ।
4) वर्तमान काल या समयसामयिक काल - इस काल की शुरुआत राजा राममोहन राय (1772 - 1833) की समय से कही जाती है इसके प्रमुख दार्शनिकों में महात्मा गांधी, बीआर अंबेडकर, स्वामी विवेकानंद, श्री अरविंद आदि प्रमुख है।
भारतीय दर्शन की शाखाएं या संप्रदाय
भारतीय दर्शन को उसके सिद्धांतों के आधार पर मुख्यतः 3 भागों में वर्गीकृत किया गया है
1 ) आस्तिक दर्शन 2) नास्तिक दर्शन 3) जड़वादी दर्शन
आस्तिक और नास्तिक दर्शन के मध्य विभिन्न तर्क -
- आस्तिक अर्थात ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करने वाला और नास्तिक अर्थात ईश्वर की सत्ता को जो स्वीकार नहीं करते हैं।
- आस्तिक अर्थात जो वेद की प्रमाणिकता को स्वीकार करता है तथा नास्तिक मतलब जो वेद की प्रमाणिकता को स्वीकार नहीं करता है।
- आस्तिक उसे कहते हैं जो परलोक अर्थात स्वर्ग, नरक की सत्ता को स्वीकार करते हैं तथा नास्तिक वह जो परलोक की सत्ता को स्वीकार नहीं करते।
भारत में मुख्यत: 6 दर्शनों को आस्तिक कहा जाता है तथा इन्हें षड्दर्शन भी कहते हैं
- सांख्य दर्शन - कपिल मुनि
- योग दर्शन - महर्षि पतंजलि
- न्याय दर्शन - महर्षि गौतम
- वैशेषिक दर्शन - महर्षि कणाद
- मीमांसा दर्शन - महर्षि जैमिनि
- वेदांत दर्शन - वादरायण मुनि
जड़वादी दर्शन
जड़वादी उस दर्शन को कहते हैं जो न तो वेद की प्रमाणिकता को स्वीकारता है न ईश्वर को न ही परलोक की सत्ता को स्वीकार करता है वह केवल इस सृष्टि को ही सत्ता के रूप में स्वीकार करता है। चार्वाक दर्शन ही एकमात्र जड़वादी दर्शन है।
उपसंहार
भारत की इन दर्शनों को देखने से पता चलता है की सभी के प्रमाण विज्ञान, तत्व विज्ञान आदि सभी में कुछ बिंदुओं में अंतर है जिससे अलग-अलग दर्शनों का विकास हुआ है
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