दर्शन क्या है ?
दर्शन क्या है ?
दर्शन शब्द दृश धातु से मिलकर बना है जिसका जिसका अर्थ है "जिसके द्वारा देखा जाए " | किसी तत्व के भौतिक या आंतरिक सवरूप का ज्ञान हमें जिसके माध्यम से प्राप्त होता है , दर्शन कहलाता है।
अलग अलग दार्शनिको ने दर्शन के अलग अलग पद्धतियां विकसित की है तथा ये सभी दर्शन अपने अपने सिद्धांतो पर खरे उतरे है। इन दर्शनों के अध्ययन की शाखा को हम दर्शनशास्त्र(PHILOSOPHY ) कहते है। PHILOSOPHY का अर्थ है philos अर्थात प्रेम तथा sophia अर्थात ज्ञान अर्थात ज्ञान प्रेमी।
दर्शन शाश्त्र की शाखाएं
दर्शन शाश्त्र के अंतर्गत दर्शन को 2 शाखाओं में विभाजित किया गया है जो उनके गुणों के आधार पर युक्तियुक्त है। ये शाखाएं निम्नलिखित है -
1 भारतीय दर्शन तथा
2 पाश्चात्य दर्शन
भारतीय दर्शन तथा पाश्चात्य दर्शन दोनों के अपने अपने महत्त्व है तथा दोनों ही दर्शन मनुष्य के जिज्ञासा को शांत करते है। भारतीय दर्शन का जन्म भारत में हुआ है तथा इसके विभिन्न भागो का विकास भी यहीं हुआ है। वही दूसरी ओऱ पश्चिमी दर्शन यूरोप की देन है।
भारतीय दर्शन एवं पाश्चात्य दर्शन में अंतर
- भारतीय दर्शन का विकास मानव जीवन में व्याप्त विभिन्न दुखों के निवारणार्थ हुआ है वहीं दूसरी ओर पश्चिमी दर्शन का विकास जिज्ञासा वश ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य से हुआ है
- भारतीय दर्शन का उद्देश्य व्यवहारिक प्रतीत होता है अर्थात दर्शन से हमें जो ज्ञान प्राप्ती होती है उसे जीवन में चरितार्थ करना पड़ता है वहीं पश्चिमी दर्शन व्यवहारिक ना होकर जिज्ञासा शांत करने का माध्यम है
- भारतीय दर्शन में दर्शन को साध्य न मानकर साधन का दर्जा दिया गया है वहीं दूसरी ओर पश्चिमी दर्शन में दर्शन द्वारा प्राप्त ज्ञान को साध्य के रूप में स्वीकार किया गया है।अर्थात दर्शन द्वारा जो ज्ञान हमें प्राप्त होता है उस ज्ञान को भारतीय दर्शन में लक्ष्य न मानते हुए लक्ष्य प्राप्ति का साधन माना गया है तथा लक्ष्य के रूप में मोक्ष को माना गया है वहीं दूसरी ओर पश्चिमी दर्शन में इसे साध्य अर्थात लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया है।
- भारतीय दर्शन का दृष्टिकोण धार्मिक है अर्थात दर्शन के साधन के रूप में धर्म को अपनाया गया है। विभिन्न प्रकार के तत्व, सत्ता आदि की व्याख्या धर्म के मापदंडों के सहारे की गई है वहीं दूसरी ओर पश्चिमी दर्शन का दृष्टिकोण वैज्ञानिक है।
- भारतीय दर्शन को अनेन्द्रिय (non - sensuous ) दर्शन कहा जाता है अर्थात यह तत्व की ज्ञान को आध्यात्मिक अनुभूति से प्राप्त करने पर जोर देता है वहीं पश्चिमी दर्शन को इंद्रिय (sensuous) दर्शन कहते हैं क्योंकि इसमें तत्व की बाह्य सवरूप से ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है ऐसा मानते हैं।
- भारतीय दर्शन में ज्ञाता एवं ज्ञेय के मध्य द्वैत विद्यमान नहीं रहता वहीं पाश्चात्य दर्शन में ज्ञाता एवं ज्ञेय के मध्य द्वैत विद्यमान रहता है।
- भारतीय दर्शन में ब्रह्मांड के अलावा परलोक की सत्ता को भी स्वीकार किया गया है वहीं पश्चिमी दर्शन में केवल ब्रह्मांड को ही स्वीकारा गया है।
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