ग्रहण क्या है ?

     जब किन्ही दो खगोलीय पिंडों के मध्य कोई तीसरा पिंड अपनी निश्चित अवस्था छोड़ कर आ जाता है तब इसे ग्रहण कहा जाता है।  ग्रहण की घटना मुख्य रूप से सूर्य चंद्रमा एवं पृथ्वी के मध्य देखने को मिलती है।  सूर्य सौरमंडल के केंद्र में स्थित है जिसका चक्कर सभी आकाशीय पिंड (सौरमंडलीय) लगाते हैं।  

    सभी का एक निश्चित परिक्रमण काल होता है तथा एक निश्चित कक्षा होती है जिसमें सभी ग्रह उपग्रह चक्कर काटते रहते हैं , किंतु जब किसी विशेष परिस्थिति में कोई  खगोलीय पिंड किन्ही दो पिंडों के मध्य आ जाता है तब ऐसी स्थिति में ग्रहण की घटना उत्पन्न होती है। 

    इस स्थिति में दो पिंडों के मध्य तीसरी पिंड के आने से एक प्रकार की छाया उत्पन्न होती है जो ग्रहण कहलाती है । ग्रहण एक प्रकार की खगोलीय घटना है यह पूर्ण या आंशिक रूप से हो सकता है।  ग्रहण की घटना मुख्य रूप से तभी होती है जब सूर्य चंद्रमा एवं पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं ।  

    ऐसा वर्ष में दो बार होता है एक कैलेंडर वर्ष में चार से सात ग्रहण हो सकते हैं एक ग्रहण वर्ष या ग्रहण युग में ग्रहण की पुनरावृत्ति होती है।  

ग्रहण के प्रकार 

 ग्रहण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है 

सूर्य ग्रहण   -  
    • सूर्य ग्रहण में जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के मध्य आ जाता है तथा चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है उस स्थिति को सूर्य ग्रहण करते हैं। सूर्य ग्रहण आंशिक या पूर्ण रूप से हो सकता है।  जब चंद्रमा पूर्ण रूप से सूर्य को ढक लेता है तो इसी स्थिति को पूर्ण सूर्यग्रहण तथा जब चंद्रमा सूर्य को आंशिक रूप से ढकता है तो इस स्थिति को आंशिक सूर्यग्रहण कहा जाता है।  सूर्य ग्रहण पूर्ण आंशिक या वलयाकार रूप में हो सकता है यह मुख्य रूप से चंद्रमा की स्थिति , पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी तथा दर्शक के प्रति स्थिति जैसे कारकों पर निर्भर करता है। अलग-अलग स्थान से दर्शकों को अलग-अलग प्रकार के ग्रहण दिखाई दे सकते हैं 
    • सूर्य ग्रहण की विभिन्न स्थितियां -
      • यदि सूर्य और चंद्रमा बिल्कुल सटीक चंद्रपात  पर है तो पूर्ण सूर्य ग्रहण या वलयाकार सूर्य ग्रहण होने की संभावना अधिक होती है
      • इसी प्रकार चंद्रमा के पृथ्वी के निकट होने पर पूर्ण और दूर होने पर वलयाकार सूर्यग्रहण होने की संभावना होती है। 
      • ग्रहण परिणाम सूर्य के व्यास का वह भाग जिसे सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा द्वारा ढक लिया जाता है ग्रहण परिणाम कहलाता है 
      • पूर्ण ग्रहण होने के लिए यह मान हमेशा एक से अधिक या उसके बराबर होता है आंशिक और पूर्ण दोनों ग्रहण में ही ग्रहण परिणाम चंद्रमा के और सूर्य के कोणीय आकार का अनुपात होता है।
    • सूर्य ग्रहण के समय सूर्य के दिखाई देने वाले भाग को सूर्य किरीट या कॅरोना  कहते हैं यह सूर्य का बाह्यतम परत होता है।  सूर्य किरीट एक्सरे उत्सर्जित करती है।  पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय सूर्य किरीट से प्रकाश की प्राप्ति होती है एक्सरे उत्सर्जित करने के कारण ही सूर्य ग्रहण को भारतीय संस्कृति में अशुभ माना जाता है।  सूर्य ग्रहण को देखने या उस दौरान घर से बाहर रहने को अशुभ माना जाता है। क्योंकि सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य से नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलती है
सूर्य ग्रहण 


चंद्र ग्रहण -     
    • चंद्र ग्रहण की घटना तब होती है जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है यह केवल पूर्णिमा के दौरान देखने को मिलता है जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी से दूर होता है।  
    • सूर्य ग्रहण के विपरीत चंद्रमा का ग्रहण लगभग पूरे गोलार्ध से देखा जा सकता है इस कारण से किसी स्थान से चंद्रग्रहण दिखाई देना अधिक आम बात है।  
    • एक चंद्रग्रहण लंबे समय तक चलता है पूरा होने में कई घंटे लगते हैं पूर्णता के साथ आम तौर पर लगभग 30 मिनट से लेकर 1 घंटे तक के औसत समय में होता है।  
    • चंद्रग्रहण तीन प्रकार के होते हैं 
      •  उपछाया (माद्य) ग्रहण - जब चंद्रमा केवल पृथ्वी के ऊपर छाया को पार करता है 
      • आंशिक ग्रहण -  जब चंद्रमा आंशिक रूप से पृथ्वी की छाया की प्रक्रिया अर्थात छाया का गर्भ या केंद्र में आ जाता है आंशिक ग्रहण होता है।  
      • पूर्ण ग्रहण - जब चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की छाया के अंतर्गत जाता है पूर्ण चंद्र ग्रहण कहलाता है  हालांकि पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान भी चंद्रमा पूरी तरह से छाया से नहीं ढका होता है पृथ्वी के वायुमंडल के माध्यम से अपवर्त्य सूर्य प्रकाश छाया में प्रवेश करता है और एक हल्की रौशनी उसे प्रदान करता है। 
चंद्र ग्रहण 


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