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ग्रहण क्या है ?

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       जब किन्ही दो खगोलीय पिंडों के मध्य कोई तीसरा पिंड अपनी निश्चित अवस्था छोड़ कर आ जाता है तब इसे ग्रहण कहा जाता है।  ग्रहण की घटना मुख्य रूप से सूर्य चंद्रमा एवं पृथ्वी के मध्य देखने को मिलती है।  सूर्य सौरमंडल के केंद्र में स्थित है जिसका चक्कर सभी आकाशीय पिंड (सौरमंडलीय) लगाते हैं।        सभी का एक निश्चित परिक्रमण काल होता है तथा एक निश्चित कक्षा होती है जिसमें सभी ग्रह उपग्रह चक्कर काटते रहते हैं , किंतु जब किसी विशेष परिस्थिति में कोई  खगोलीय पिंड किन्ही दो पिंडों के मध्य आ जाता है तब ऐसी स्थिति में ग्रहण की घटना उत्पन्न होती है।       इस स्थिति में दो पिंडों के मध्य तीसरी पिंड के आने से एक प्रकार की छाया उत्पन्न होती है जो ग्रहण कहलाती है । ग्रहण एक प्रकार की खगोलीय घटना है यह पूर्ण या आंशिक रूप से हो सकता है।  ग्रहण की घटना मुख्य रूप से तभी होती है जब सूर्य चंद्रमा एवं पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं ।        ऐसा वर्ष में दो बार होता है एक कैलेंडर वर्ष में चार से सात ग्...