छत्तीसगढ़ के नामकरण का इतिहास
छत्तीसगढ़ के नामकरण का इतिहास
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छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण 1 नवंबर सन 2000 को हुआ। इससे पूर्व यह मध्य प्रदेश राज्य का भाग था। छत्तीसगढ़ के नामकरण के विषय में भिन्न-भिन्न तथ्य देखने को मिलते हैं जो निम्नानुसार है -
छत्तीसगढ़ नाम का अस्तित्व में आना
वैसे तो छत्तीसगढ़ शब्द के विषय में कोई प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर भी भिन्न-भिन्न न साहित्य , अभिलेखो आदि से छत्तीसगढ़ के नामकरण की जानकारी मिलती है जिसका विकास निम्नानुसार हुआ है -
खैरागढ़ के राजा लक्ष्मी निधि रहा है के काल में उनके कवि दलराम राव द्वारा रचित काव्य पंक्ति (1494) में प्रथम बार छत्तीसगढ़ शब्द के प्रयोग के विषय में जानकारी मिलती है। उनके द्वारा रचित निम्न पंक्ति में छत्तीसगढ़ शब्द के प्रयोग की जानकारी है।
"लक्ष्मीनिधि राय सुनो चित्त दे गढ़ छत्तीस में न गढ़ैया रही "
चूँकि 1494 से पहले भारत पर मुगलों का आगमन हो चुका था अतः यह कहा जा सकता है कि सल्तनत काल के आसपास तक इस क्षेत्र के लिए छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग आरंभ हो गया था
रतनपुर के कवि गोपाल चंद्र मिश्र द्वारा रचित खूब तमाशा (1686) में भी छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग किया गया है। रेवाराम के विक्रम विलास (1896) में भी छत्तीसगढ़ी शब्द का प्रयोग मिलता है।
छत्तीसगढ़ के नामकरण के संबंध में मिथक
अलेक्जेंडर कनिंघम के सहयोगी बेगलर ने छत्तीसगढ़ के नामकरण के संदर्भ में एक किवदंती का उल्लेख किया है जिसके अनुसार राजा जरासंध के समय 36 चर्मकार परिवार यहां आकर बस गए थे। इन्हीं के आधार पर इस क्षेत्र को 36 घर करके संबोधित किया जाने लगा। बाद में उसी का अपभ्रंश छत्तीसगढ़ हो गया।
दूसरा मिथक है कलचुरी काल में संपूर्ण प्रादेशिक क्षेत्र 36 गढ़ों या 36 किलो में विभाजित था इसी के आधार पर इसे छत्तीसगढ़ कहा जाता है शिवनाथ नदी के उत्तर में रतनपुर शाखा के अंतर्गत 18 गढ़ जबकि दक्षिण में रायपुर शाखा के अंतर्गत 18 गए थे।
प्राचीनकाल में छत्तीसगढ़ के विभिन्न नाम
रामायण काल
छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम एवं रामायण कालीन नाम दक्षिण कौशल था। वाल्मीकि कृत रामायण में उत्तर कौशल एवं दक्षिण कौशल शब्दों का उल्लेख मिलता है विंध्याचल पर्वत का दक्षिणी भाग दक्षिण कौशल जबकि उत्तरी भाग उत्तर कौशल (वर्तमान उत्तर प्रदेश) क्षेत्र कहलाता था। इस काल में बस्तर क्षेत्र को दंडकारण्य के नाम से सम्बोधित किया जाता था।
श्री राम की माता कौशल्या इसी दक्षिण कौशल क्षेत्र के राजा भानुमंत की पुत्री थी , जिनका विवाह उत्तर कौशल के राजा दशरथ जी के साथ हुआ था। भानुमंत का पुत्र नहीं होने के कारण यह दक्षिण कौशल क्षेत्र उत्तर कौशल अर्थात अयोध्या राज्य क्षेत्र में शामिल कर लिया गया था। जिसके कारण कालांतर में यह क्षेत्र श्री राम जी के शासन का भी हिस्सा था।बाद में लव उत्तर कौशल एवं कुश दक्षिण कौशल के राजा हुए।
महाभारत काल
महाभारत काल में छत्तीसगढ़ को प्राककोशल कहा जाता था तथा बस्तर क्षेत्र को कांतर क्षेत्र के नाम से जाना जाता था।
बौद्ध एवं जैन काल
बौद्ध एवं जैन काल में छत्तीसगढ़ को पुनः दक्षिण कौशल के नाम से संबोधित किया जाने लगा। बौद्ध ग्रंथ अवदान शतक के अनुसार महात्मा बुद्ध छत्तीसगढ़ के सिरपुर में 3 माह तक निवास किए थे।
छठी शताब्दी में बौद्ध भिक्षु प्रभु आनंद द्वारा सिरपुर में स्वास्तिक विहार एवं आनंद कुटी विहार बनवाया गया था।
कालिदास रचित रघुवंशम में भी इस क्षेत्र के लिए कौशल शब्द का प्रयोग देखने को मिलता है।
गुप्तकालीन हरिषेण की प्रयाग प्रशस्ति में भी इस क्षेत्र के लिए कौशल शब्द का उल्लेख मिलता है।
प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता अलेक्जेंडर कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट Archiological Survey of India में इस क्षेत्र को महाकौशल कह कर संबोधित किया है। जबकि छत्तीसगढ़ के संबंध में प्राप्त ताम्रपत्र , अभिलेखों , मुद्राओं इत्यादि में कहीं पर भी महाकोशल शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है।
ऐसा प्रतीत होता है मानो कनिंघम ने इस क्षेत्र की महानता बतलाते हुए कौशल शब्द में महा उपसर्ग जोड़ दिया था। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्द इतिहासकार राय बहादुर हीरालाल द्वारा छत्तीसगढ़ का नाम चेदिसगढ़ उल्लेख किया गया है। पूर्व में इस क्षेत्र पर चेदि वंशीय राजाओं का शासन था। अतः इस क्षेत्र को चेदिसगढ़ कहा जाता था। बाद में उसी का अपभ्रंश छत्तीसगढ़ हो गया।
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